
सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील सामग्री की मौजूदगी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा है कि आज छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन है. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि वह ऑनलाइन अश्लीलता पर नियंत्रण को लेकर कुछ कदम उठाने जा रही है. कोर्ट ने सरकार और निजी पक्षों को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है.
पूर्व सूचना आयुक्त उदय माहुरकर समेत 5 याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया है कि मौजूदा कानूनी व्यवस्था अश्लीलता पर लगाम लगाने में अपर्याप्त साबित हो रही है. उन्होंने कहा कि उन्होंने अलग-अलग सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को उनके यहां उपलब्ध अश्लील सामग्री को लेकर पत्र लिखे, लेकिन इन कंपनियों ने कह दिया कि वह किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे. याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भी ज्ञापन सौंपे.
याचिकाकर्ताओं ने बताया है कि इन सभी प्लेटफॉर्म पर सॉफ्ट पोर्न और पोर्नोग्राफिक कंटेंट से लेकर चाइल्ड पोर्नोग्राफी तक उपलब्ध है. यह बीएनएस, आईटी एक्ट और पॉक्सो एक्ट जैसे कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन हैं, लेकिन इन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता कर बेधड़क परोसा जा रहा है. यह महिलाओं और बच्चों के प्रति यौन अपराधों की बड़ी वजह बन गए हैं.
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने याचिका में कही गई बातों से सहमति जताई, लेकिन कहा कि इस समस्या का हल निकालना सरकार के अधिकार क्षेत्र का विषय है. सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इन प्लेटफॉर्म पर मौजूद सामग्री को अश्लील कहा है, लेकिन कई बार यह उससे भी अधिक विकृत होते हैं. उनमें ऐसी बातें दिखाई जाती हैं, जिनकी चर्चा तक करने में शर्म आए.
तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार इस विषय को लेकर सोच-विचार कर रही है. वह जल्द ही कुछ कदम उठाएगी. इस पर कोर्ट ने उन्हें जवाब दाखिल करने को कहा. याचिका में केंद्र सरकार के अलावा एक्स (ट्विटर), मेटा (फेसबुक), नेटफ्लिक्स, अमेजन, आल्ट बालाजी, उल्लू डिजिटल, मुबी, गूगल और एप्पल को पक्ष बनाया गया है. कोर्ट ने उन्हें भी नोटिस जारी किया.
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